Monday, 23rd December, 2024

उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥
Let a man raise himself by his own efforts. Let him not degrade himself. Because a person’s best friend or his worst enemy is none other than his own self.

aditya hridaya stotra

आदित्य हृदय स्तोत्र

(हिंदी में अर्थ एवं व्याख्या सहित)

āditya hṛdaya stotra | aditya hridaya stotra

(With meaning and explanation in English)

आदित्य हृदय स्त्रोत भगवान सूर्य देव की प्रार्थना है जो राम और रावण के मध्य महायुद्ध से पूर्व भगवान राम को महर्षि ऋषि अगस्त्य ने बताया था। जातक की राशि (जन्म कुंडली) में सूर्य ग्रहण लगने पर अच्छे परिणाम के लिए, नियमित रूप से कर्मकाण्ड (पाठ, व्रत हवन आदि) करने होते हैं। आदित्य हृदय स्तोत्र मन की शांति, आत्मविश्वास और समृद्धि देता है। इस प्रार्थना के पाठ से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं। आदित्य हृदय स्तोत्र पूजा विधि से अनगिनत लाभ होते हैं। यह प्रार्थना भगवान सूर्य अर्थात आदित्य को हृदय को छूती है इसलिए इसे आदित्य हृदयम कहते हैं।

Last Updated: 27th October, 2022

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्॥१॥
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।
उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा॥२॥

tato yuddhapariśrāntaṃ samare cintayā sthitam।
rāvaṇaṃ cāgrato dṛṣṭvā yuddhāya samupasthitam॥1॥
daivataiśca samāgamya draṣṭumabhyāgato raṇam।
upagamyābravīd rāmamagastyo bhagavāṃstadā॥2॥

इधर श्रीरामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिंता करते हुए युद्धभूमि में खड़े थे। इतने में रावण युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया। यह देख भगवान् अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आए थे, श्रीराम के पास जाकर बोले -

Here Shri Ramchandraji was standing in the battlefield worrying tired of the war. In this, Ravana appeared in front of them for the war. Seeing this, Lord Agastya Muni, who had come to see the war with the gods, went to Shri Ram and said -

राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम्।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे॥३॥

rāma rāma mahābāho śṛṇu guhyaṃ sanātanam।
yena sarvānarīn vatsa samare vijayiṣyase॥3॥

राम! राम! महाबाहु! यह सनातन गोपनीय सनातन स्तोत्र सुनो। वत्स! इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे।

Ram! Ram! Great! Listen to this eternal secret Sanatan Stotra. Child! By chanting it you will get victory over all your enemies in battle.

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्॥४॥
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्॥५॥

ādityahṛdayaṃ puṇyaṃ sarvaśatruvināśanam।
jayāvahaṃ japaṃ nityamakṣayaṃ paramaṃ śivam॥4॥
sarvamaṅgalamāṅgalyaṃ sarvapāpapraṇāśanam।
cintāśokapraśamanamāyurvardhanamuttamam॥5॥

इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है 'आदित्यहृदय'। यह परम पवित्र और संपूर्ण शत्रुओं का नाश करनेवाला है। इसके जप से विजय की प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्षय और परम कल्याणमय स्तोत्र है। संपूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिंता और शोक को मिटाने तथा आयु को बढ़ानेवाला उत्तम साधन है।

The name of this secret hymn is 'Adityahridaya'. He is the most holy and the destroyer of all enemies. Its chanting leads to victory. This is eternally inexhaustible and supreme welfare stotra. There is also Mars of all Mars. This destroys all sins. It is the best means of eradicating worry and grief and prolonging life.

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्॥६॥

raśmimantaṃ samudyantaṃ devāsuranamaskṛtam।
pūjayasva vivasvantaṃ bhāskaraṃ bhuvaneśvaram॥6॥

भगवान् सूर्य अपनी अनंत किरणों से सुशोभित (रश्मिमान्) है। ये नित्य उदय होनेवाला (समुद्यन्), देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान् नाम से प्रसिद्ध, प्रभा का विस्तार करनेवाले (भास्कर) और संसार के स्वामी (भुवनेश्वर) हैं। तुम इनका इन नाम मन्त्रों के द्वारा पूजन करो।

Lord Surya is adorned with his infinite rays (Rashmiman). He is the eternal riser (Samudyan), saluted by the gods and demons, famous by the name Vivasvan, the spreader of light (Bhaskar) and the lord of the world (Bhuvaneshwar). You worship him through these name mantras.

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः॥७॥

sarvadevātmako hyeṣa tejasvī raśmibhāvanaḥ।
eṣa devāsuragaṇā~llokān pāti gabhastibhiḥ॥7॥

संपूर्ण देवता इन्हीं के स्वरूप है। ये तेज की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करनेवाले हैं। ये ही अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित संपूर्ण लोगों का पालन करते हैं।

The entire deity is his form. He is the one who gives power and energy to the world with the amount of effulgence and its rays. They are the ones who follow the whole people including the deities and asuras by spreading their rays.

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः॥८॥
पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः।
वायुर्वह्निः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः॥९॥

eṣa brahmā ca viṣṇuśca śivaḥ skandaḥ prajāpatiḥ।
mahendro dhanadaḥ kālo yamaḥ somo hyapāṃ patiḥ॥8॥
pitaro vasavaḥ sādhyā aśvinau maruto manuḥ।
vāyurvahniḥ prajāḥ prāṇa ṛtukartā prabhākaraḥ॥9॥

ये ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द (son of Śiva), प्रजापति, इंद्र, धनद: (कुबेर), काल (time), यम (god of retribution), सोम (चन्द्रमा), वरुण (ruler of waters), पितर (ancestors), (eight) वसु (the forces of nature), (tweleve) साध्य, अश्विनीकुमार (physicians of god), the forty nine Maruts (wind gods) मरुद्गण, मनु (progenitor of the human race), वायु (the wind god), अग्नि (Vahni =fire), प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करनेवाले तथा प्रभा के पुंज हैं।

These are Brahma, Vishnu, Shiva, Skanda (son of iva), Prajapati, Indra, Dhanad (Kubera), Kaal (time), Yama (god of retribution), Soma (moon), Varuna (ruler of waters), Pitra (ancestors), (eight) Vasu (the forces of nature), (tweleve) Sadhya, Ashwinikumar (physicians of god), the forty nine Maruts (wind gods) Marudgan, Manu (progenitor of the human race), Vayu (the wind) God), Agni (Vahni = fire), Praja, Prana, the manifestation of the seasons and are the beams of Prabha.

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान्।
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः॥१०॥
हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान्।
तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टा मार्ताण्डकोंऽशुमान्॥११॥
हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनो भास्करो रविः।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः॥१२॥
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुःसामपारगः।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवङ्गमः॥१३॥
आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः।
कविर्विश्वो महातेजाः रक्तः सर्वभवोद्भवः॥१४॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते॥१५॥

ādityaḥ savitā sūryaḥ khagaḥ pūṣā gabhastimān।
suvarṇasadṛśo bhānurhiraṇyaretā divākaraḥ॥10॥
haridaśvaḥ sahasrārciḥ saptasaptirmarīcimān।
timironmathanaḥ śambhustvaṣṭā mārtāṇḍakoṃ'śumān॥11॥
hiraṇyagarbhaḥ śiśirastapano bhāskaro raviḥ।
agnigarbho'diteḥ putraḥ śaṅkhaḥ śiśiranāśanaḥ॥12॥
vyomanāthastamobhedī ṛgyajuḥsāmapāragaḥ।
ghanavṛṣṭirapāṃ mitro vindhyavīthīplavaṅgamaḥ॥13॥
ātapī maṇḍalī mṛtyuḥ piṅgalaḥ sarvatāpanaḥ।
kavirviśvo mahātejāḥ raktaḥ sarvabhavodbhavaḥ॥14॥
nakṣatragrahatārāṇāmadhipo viśvabhāvanaḥ।
tejasāmapi tejasvī dvādaśātman namo'stu te॥15॥

इन्हीं के नाम - आदित्य (अदितीपुत्र), सविता (जगत को उत्पन्न करनेवाले), सूर्य, (सर्वव्यापक), खग (आकाश में विचरनेवाले), पृषा (पोषण करनेवाले), गभस्तिमान (प्रकाशमान - the nourisher with rain), सुवर्णसादृश (the possessor of golden rays that are brilliant having the golden seed), भानु (प्रकाशक), हिरण्यरेता (ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बीज), दिवाकर (रात्रि का अंधकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलानेवाले), हरिदश्व (हरे रंग के घोड़े वाले, दिशाओं में व्यापक), सहस्रार्चि (हजारों किरणों से सुशोभित), सात घोड़ेवाले, मरीचिमान (किरणों से सुशोभित), अंधकार का नाश करनेवाले (तिमिरोन्मथनः = destroyer of darkness), शम्भू (कल्याण के उद्गमस्थान), त्वष्टा (भक्तों का दुःख दूर करनेवाले), मार्तन्डक (ब्रह्माण्ड को जीवन प्रदान करनेवाले - who is infuser of life in the cosmic egg), अंशुमान (किरण धारण करने वाले), हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा - who is a golden foetus), शिशिरस्तपनो (=ठंडी का नाश करनेवाले), अहस्कर (दिनकर - who brings the day), रवि (सब के स्तुतिपात्र - eulogised by all), अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः (=अग्नि को गर्भ में धारण करनेवाले आदिति के पुत्र), शंख ( आनन्दस्वरूप एवं व्यापक), शिशिरनाशनः (the destroyer of frost), व्योमनाथ: (आकाश स्वामी), तमोभेदी (अंधकार को नष्ट करनेवाले), ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद के पारगामी, घनवृष्टि: (घनी वृष्टि देनेवाले), अपां मित्रो (friend of water - जल को उत्पन्न करने वाले), विन्ध्यवीथीप्लवङ्गमः (the one who swiftly crosses the sky), आतपी (radiator of heat), मण्डली (adorned with a circle of rays - किरणों को धारण करनेवाले), मृत्युः (he is death himself), पिंगल (भूरे रंग वाले), सबको ताप देनेवाले, कवि (त्रिकालदर्शी), विश्व (सर्वस्वरूप), महातेजस्वी, लाल रंगवाले, सर्वभवोद्भवः (सबकी उत्पत्ति के कारण), नक्षत्र, ग्रह और तारागणों के स्वामी, विश्वभावन (जगत की रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी तथा द्वादशात्मा (बारह स्वरूपों में अभिव्यक्त) हैं। इन सभी नामों से प्रसिद्ध सूर्यदेव! आपको नमस्कार है।

Their names are Aditya (Aditiputra), Savita (creator of the world), Surya, (omnipotent), Khaga (moving in the sky), Prasha (nourisher), Gabhastiman (Luminous - the nourisher with rain), Suvarnasadru (the possessor) of golden rays that are brilliant having the golden seed), Bhanu (illuminator), Hiranyreta (seed of origin of the universe), Divakar (dispersing the light of day by dispelling the darkness of night), Haridashva (Horse in color, sweeping in all directions), Sahasrarchi (Adorned with a thousand rays), One with seven horses, Marichiman (Adorned with rays), Destroyer of darkness (Timironmathanah = destroyer of darkness), Shambhu (Origin of well-being), Tvashta (the remover of the sorrows of the devotees), Martandaka (the one who gives life to the universe - who is infuser of life in the cosmic egg), Anshuman (bearer of rays), Hiranyagarbha (Brahma - who is a golden foetus), Sisirastapano (=destroyer of cold), Ahaskar (Dinkar - who brings the day), Ravi (praised by all - eulogised by all), Agnigarbhaऽditeh Putraha (= conceiving fire in the womb) Son of Aditi, the conch shell (ananda form and pervasive), shishiranashanah (the destroyer of frost),Vyomnatha (lord of the sky), Tamobhedi (destroyer of darkness), Transcendant of Rigveda, Yajurveda and Samaveda, Ghanavrishti: (the giver of thick rain), Apam Mitra (friend of water - the creator of water), Vindhyaveethiplavangamah (the one who swiftly crosses the sky), Atapi (radiator of heat), Mandali (adorned with a circle of rays - bearer of rays), Mrityah (he is death himself), Pingal (brown coloured), Giver of heat, Poet (Trikaldarshi) ), Vishva (the omnipresent), the mahatjasvi, the red-coloured, sarvabhavodbhavah (the cause of the origin of all), the lord of the constellations, planets and stars, Vishwabhavan (protector of the world), is very brilliant among the tejasvians and the dvadasatma (manifested in twelve forms). Suryadev famous by all these names! Greetings to you.

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः॥१६॥

namaḥ pūrvāya giraye paścimāyādraye namaḥ।
jyotirgaṇānāṃ pataye dinādhipataye namaḥ॥16॥

पूर्वागीरी (उदयाचल) तथा पश्चिमगिरि (अस्ताचल) तक आपको नमस्कार है। ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है।

Greetings to you till Purvagiri (Udayachal) and Paschimgiri (Astachal). Salutations to you, the lord of the Jyotirganas (planets and stars) and the ruler of the day.

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः॥१७॥

jayāya jayabhadrāya haryaśvāya namo namaḥ।
namo namaḥ sahasrāṃśo ādityāya namo namaḥ॥17॥

आप जयस्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता हैं। आपके रथ में हरे घोड़े जुते हैं। आपको बारम्बार नमस्कार है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान् सूर्या आपको बारम्बार नमस्कार है। अदिति के पुत्र आपको बारम्बार नमस्कार है।

You are the form of Jayaswaroop and the giver of victory and well-being. Green horses are yoking in your chariot. Greetings to you again and again. Lord Surya, adorned with thousands of rays, salutes you again and again. Salutations to you repeatedly, son of Aditi.

नम उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमो नमः॥१८॥

nama ugrāya vīrāya sāraṅgāya namo namaḥ।
namaḥ padmaprabodhāya pracaṇḍāya namo namaḥ॥18॥

उग्र (अभक्तों के लिये भयंकर), वीर (शक्ति सम्पन्न) एवं सारंग (शीघ्रगामी) सूर्यदेव को मेरा नमस्कार है। कमलों को विकसित करनेवाले प्रचंड तेजधारी प्रचण्ड को भी मेरा प्रणाम है।

My salutations to the Ugra (fearful to the non-devotees), Veer (powerful) and Sarang (quick-moving) Sun God. I also pay my respects to Prachanda, the mighty flamboyant who grows the lotus.

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्यवर्चसे।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः॥१९॥

brahmeśānācyuteśāya sūryāyādityavarcase।
bhāsvate sarvabhakṣāya raudrāya vapuṣe namaḥ॥19॥

परात्पर रूप में आप भगवान ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी है। सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्यमंडल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देनेवाली अग्नि आपका ही स्वरुप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले आपको मेरा नमस्कार है।

In Paratpar form you are also the lord of Lord Brahma, Shiva and Vishnu. Sur is your noun, this solar system is your glory, You are full of light, the fire that destroys everyone is your form, I salute to you who take the form of fierceness.

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः॥२०॥

tamoghnāya himaghnāya śatrughnāyāmitātmane।
kṛtaghnaghnāya devāya jyotiṣāṃ pataye namaḥ॥20॥

हे प्रभु, आप तमोघ्नाय (अज्ञान और अन्धकार के नाशक) है, आप हिमघ्नाय (जड़ता एवं शीत के निवारक) तथा शत्रुघ्नाय (शत्रु का नाश करनेवाले) हैं। अमितात्मने (the one whose extent is immeasurable - आपका स्वरुप अप्रमेय है)। आप कृतघ्नघ्नाय (कृतघ्नों का नाश करनेवाले), संपूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको मेरा प्रणाम है।

O Lord, you are Tamoghnaya (destroyer of ignorance and darkness), you are Himaghnaya (destroyer of inertia and cold) and Shatrughnaya (destroyer of enemies). Amitatmane (the one whose extent is immeasurable - Your form is immeasurable). You are the Kritghnaghnaya (destroyer of ungrateful), the Lord of all lights and the form of God, I bow to you.

तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे॥२१॥

taptacāmīkarābhāya haraye viśvakarmaṇe।
namastamo'bhinighnāya rucaye lokasākṣiṇe॥21॥

प्रभु आप प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरि (अज्ञान का हरण करने वाले) हैं, आप विश्वकर्मा (संसार की सृष्टि करने वाले) हैं, तमोऽभिनिघ्नाय (तम के नाशक), रुचये (सभी क्रियाओं के कारक), एवं लोकसाक्षिण (जगत के साक्षी) हैं, आपको मेंरा प्रणाम है।

Lord, you are like the golden gold, you are Hari (the remover of ignorance), you are Vishwakarma (the creator of the world), tamolbhinighnaya (the destroyer of tamas), ruchaye (the cause of all actions), and lokasakshina (the destroyer of tamas). Witnesses of the world), I bow to you.

नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः॥२२॥

nāśayatyeṣa vai bhūtaṃ tameva sṛjati prabhuḥ।
pāyatyeṣa tapatyeṣa varṣatyeṣa gabhastibhiḥ॥22॥

हे रघुनन्दन! ये भगवान् सूर्य ही संपूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं। जो अपनी किरणों (गभस्तिभिः) से पायत्येष (पानी को सुखाते) हैं, ये तपत्येष (गर्मी पहुंचाते) और वर्षत्येष (वर्षा करते) हैं ।

O Raghunandan! It is Lord Surya who destroys, creates and maintains all the beings. Those who with their rays (gabhastibhih) do paytyesh (dry water), they do taptyesh (transporting heat) and varstyesh (raining).

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्॥२३॥

eṣa supteṣu jāgarti bhūteṣu pariniṣṭhitaḥ।
eṣa caivāgnihotraṃ ca phalaṃ caivāgnihotriṇām॥23॥

ये सब भूतों में अन्तर्यामी रूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं। ये ही अग्निहोत्र (the sacrificial fire) तथा अग्निहोत्री पुरुषों (worshipper of the Agnihotra) को मिलनेवाले फल हैं।

Being internally situated in all the ghosts, they remain awake even when they are asleep. These are the fruits of Agnihotra (the sacrificial fire) and the Worshipper of the Agnihotra.

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः॥२४॥

devāśca kratavaścaiva kratūnāṃ phalameva ca।
yāni kṛtyāni lokeṣu sarveṣu paramaprabhuḥ॥24॥

(यज्ञ में भाग ग्रहण करने वाले) देवता, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं। संपूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं, उन सब का फल देने मैं ये ही पूर्ण समर्थ हैं।

These are the deities (who take part in the yajna), the fruits of the yajnas and sacrifices. I am fully capable of giving the fruits of all the actions that take place in all the worlds.

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव॥२५॥

enamāpatsu kṛcchreṣu kāntāreṣu bhayeṣu ca।
kīrtayan puruṣaḥ kaścinnāvasīdati rāghava॥25॥

हे राघव! विपत्ति में, कष्ट में, कान्तारेषु (दुर्गम मार्ग में) तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता।

Hey Raghav! In calamity, in trouble, in kantareshu (in the inaccessible path) and on the occasion of any other fear, a person who chants this sun god, he does not have to suffer.

पूजयस्वैनमेकाग्रे देवदेवं जगत्पतिम्।
एतत् त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यति॥२६॥

pūjayasvainamekāgre devadevaṃ jagatpatim।
etat triguṇitaṃ japtvā yuddheṣu vijayiṣyati॥26॥

इसलिये तुम एकाग्रचित्त होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर कि पूजा करो। इसका (आदित्यहृदय स्तोत्र का) तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय पाओगे।

That's why you worship this god, Jagadishwar, by being concentrated. By chanting this (Adityahridaya Stotra) thrice, you will win the battle.

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम च यथागतम्॥२७॥

asmin kṣaṇe mahābāho rāvaṇaṃ tvaṃ jahiṣyasi।
evamuktvā tato'gastyo jagāma ca yathāgatam॥27॥

महाबाहो! तुम इसी समय रावण को यूद्ध में वध कर सकोगे। यह कह कर अगस्त्य जी जैसे आये थे, उसी प्रकार चले गये।

Great! You will be able to kill Ravana in battle at this time. Saying this, Agastya ji left just as he had come.

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान्॥२८॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्॥२९॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागमत्।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्॥३०॥

etacchrutvā mahātejā naṣṭaśoko'bhavat tadā।
dhārayāmāsa suprīto rāghavaḥ prayatātmavān॥28॥
ādityaṃ prekṣya japtvedaṃ paraṃ harṣamavāptavān।
trirācamya śucirbhūtvā dhanurādāya vīryavān॥29॥
rāvaṇaṃ prekṣya hṛṣṭātmā jayārthaṃ samupāgamat।
sarvayatnena mahatā vṛtastasya vadhe'bhavat॥30॥

उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्रीरामजी का शोक दूर हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय को धारण किया और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान् सूर्य की ओर हुए इसका तीन बार जप किया। इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ। फिर परम पराक्रमी राघनाथजी ने धनुष्य उठाकर रावण की ओर देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढ़े। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया। भक्ति के साथ राम ने सूरज को देखा एवं तीन बार इस भजन का आनंद लिया। भजन के समाप्त होने पर राम ने अपने धनुष को उठाया और रावण से युद्ध करने के लिए तैयार हो ग​ए।

Hearing his sermon, Mahatejasvi Shri Ramji's grief went away. He was pleased and held the Aditya heart with a pure mind and after coming three times, he became pure and chanted it thrice in the direction of Lord Surya. This made him very happy. Then the mighty Raghnathji raised his bow and looked at Ravana and enthusiastically proceeded to win. He tried his best and decided to kill Ravana. Rama looked at the sun with devotion and enjoyed this hymn thrice. At the end of the hymn, Rama raised his bow and got ready to fight with Ravana.

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति॥३१॥

atha raviravadannirīkṣya rāmaṃ muditamanāḥ paramaṃ prahṛṣyamāṇaḥ।
niśicarapatisaṃkṣayaṃ viditvā suragaṇamadhyagato vacastvareti॥31॥

उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान् सूर्य ने प्रसन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी की और देखा और निशाचरराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा – ‘अब जल्दी करो!’

At that time, Lord Surya, standing in the midst of the gods, looked pleased and looked at Shri Ramchandraji and, knowing the time of destruction of Ravana, the demon king, was near and said joyfully - 'Hurry now!'

भगवान सूर्य की प्रार्थना से सम्बंधित अन्य मंत्र/स्त्रोत इस प्रकार हैं:

Other mantras / sources related to the prayer of Lord Surya are as follows:

सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च॥

सूर्य सभी की आत्मा है जो गतिशील और स्थिर है (अथर्ववेद 13.2.35)

The sun is the soul of all that is dynamic and static (Atharva Veda 13.2.35)

एक एव हि लोकानाम् सूर्य आत्मादिकृद् हरिः।
सर्व वेद क्रिया मूलम् ऋषिभिर्बहुधोदितः॥

सूर्य भगवान, भगवान हरि की अभिव्यक्ति, इस दुनिया में सभी की एक आत्मा है। वह सभी वैदिक गतिविधियों का स्रोत है, और कई ऋषियों द्वारा इसकी प्रशंसा की जाती है (जैसे, यहाँ, ऋषि अगस्त्य) - भागवत पुराण, 12.11.30

The Sun God, a manifestation of Lord Hari, is the one Soul of everyone in this world. He is the source of all Vedic activities, and is praised variously by several Rishis (like, here, Rishi Agastya) - Bhagavata Purana, 12.11.30

© 2022 Truescient. All Rights Reserved.