Monday, 23rd December, 2024

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
One has a right only over the duties or work and not its fruits or results, one should not be attached to inaction either, not consider oneself as the one causing the results of the actions.

Ambhasyapare Bhuvanasya Madhye

अंभस्यपारे भुवनस्य मध्ये

(हिंदी में अर्थ एवं व्याख्या सहित)

aṃbhasyapāre bhuvanasya madhye | Ambhasyapare Bhuvanasya Madhye

(With meaning and explanation in English)

Last Updated: 28th October, 2022

अंभस्यपारे भुवनस्य मध्ये नाकस्य पृष्ठे महतो महीयान्।
शुक्रेण ज्योती ग्वम् षि समनुप्रविष्टः प्रजापतिश्चरति गर्भे अन्तः॥

aṃbhasyapāre bhuvanasya madhye nākasya pṛṣṭhe mahato mahīyān।
śukreṇa jyotī gvam ṣi samanupraviṣṭaḥ prajāpatiścarati garbhe antaḥ॥

हम नाक के दूसरे छोर पर ध्यान करते हैं (नाकस्य पृष्ठे) अर्थात भौहों के बीच में, सृष्टि के भगवान भ्रु मध्य, जो किनारा रहित समुद्र में, पृथ्वी पर और स्वर्ग के ऊपर विद्यमान हैं और जो महान से महान हैं, जो बीज रूप में प्राणियों की बुद्धि में प्रवेश कर प्रकाशित है, जो भ्रूण में कार्य करता है (जो जीवित प्राणी में पैदा होता है)।

We meditate on the other end of nose (नाकस्य पृष्ठे) i.e. at middle of eyebrows, bhru Madhya, the Lord of creation, who is present in the shoreless waters, on the earth and above the heaven and who is greater than the great, having entered the shining intelligences of creatures in seed form, acts in the foetus (which grows into the living being that is born).

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