सनातन संस्कृति में प्रातः एवं सायं की आराधना का विशेष महत्व है। प्रातः-सायं दीपक प्रज्वलित कर मंत्र का जाप करने से भगवान शीघ्र प्रसन्न होते हैं। सायं के समय दीप प्रज्वलित कर मंत्र जाप करने का विशेष लाभ होता है, जीवन में सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है, और घर में सुख-समृद्धि आती है।
Last Updated: 23rd April, 2023
शुभं करोति कल्याणमारोग्यं धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
śubhaṃ karoti kalyāṇamārogyaṃ dhanasaṃpadā।
śatrubuddhivināśāya dīpajyotirnamo'stute॥
शुभ, आरोग्य और ऐश्वर्य देने वाले, वैमनस्य भावों का नाश करने वाले, दीप के प्रकाश को नमस्कार है।
Salutations to the light of the lamp, which brings auspiciousness, health and prosperity, which destroys inimical feelings.
दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
dīpajyotiḥ parabrahma dīpajyotirjanārdanaḥ।
dīpo haratu me pāpaṃ dīpajyotirnamo'stute॥
दीपक का प्रकाश परम ब्रह्म का प्रतिनिधित्व करता है। दीपक का प्रकाश जनार्दन (श्री विष्णु) का प्रतिनिधित्व करता है। दीपक का प्रकाश मेरे पापों को दूर करे; दीपज्योति को प्रणाम।
The light of the lamp represents the supreme brahman. The light of the lamp represents Janardana (Sri Vishnu). Let the light of the lamp remove my sins; Salutations to the light of the lamp.
अन्तर्ज्योतिर्बहिर्ज्योतिः प्रत्यग्ज्योतिः परात्परः।
ज्योतिर्ज्योतिः स्वयंज्योतिरात्मज्योतिः शिवोऽस्म्यहम्॥
antarjyotirbahirjyotiḥ pratyagjyotiḥ parātparaḥ।
jyotirjyotiḥ svayaṃjyotirātmajyotiḥ śivo'smyaham॥
जो दिव्य प्रकाश मेरे अंदर है, जो दिव्य प्रकाश मेरे बाहर है और दुनिया में जो प्रकाश फैला है उसका स्त्रोत एक है। सभी प्रकाशपुंजों का स्रोत एक ही है और वो परमात्मा है, शिव है। इस दीपक को प्रतिदिन प्रकाशमान करने की शपथ लेता हूं।
The source of the divine light that is inside me, the divine light that is outside me and the light that is spread in the world is one. The source of all the beams of light is only one and that is the Supreme Soul, Shiva. I take an oath to light this lamp everyday.
कीटा: पतङ्गा: मशका: च वृक्षाः
जले स्थले ये निवसन्ति जीवाः।
दृष्ट्वा प्रदीपं न च जन्म भाजा:
सुखिनः भवन्तु श्वपचाः हि विप्रा:॥
kīṭā: pataṅgā: maśakā: ca vṛkṣāḥ
jale sthale ye nivasanti jīvāḥ।
dṛṣṭvā pradīpaṃ na ca janma bhājā:
sukhinaḥ bhavantu śvapacāḥ hi viprā:॥
इस दीप के दर्शन जिस जीव को भी हो रहे हों, चाहे वह कीट-पतंगे हों या फिर पक्षी। चाहे वह पेड़ हों या पौधे। धरती पर पाए जाने वाले जीव हों या फिर पानी में। मनुष्य हों या फिर कोई भी जीव, जो भी इस दीपक को देख रहा हो, उसके सभी पापों का नाश हो और उसे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिले। उसे सदैव सुख की प्राप्ति हो।
Whichever creature is having darshan of this lamp, be it insects or birds. Be it trees or plants. Be it creatures found on earth or in water. Be it a human or any other creature, whoever is looking at this lamp, all his sins are destroyed and he gets freedom from the cycle of birth and death. May he always get happiness.
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