Married women recite Uma Maheshwar stotram propounded by Shankaracharya to increase love for their husbands. There are thirteen verses in this stotram, out of which in twelve verses, Bhagwati Uma (Parvati) is praised along with Lord Shiva, and in the last one, the falshruti has been described.
Last Updated: 2nd September, 2024
नमः शिवाभ्यां नवयौवनाभ्यां परस्पराश्लिष्टवपुर्धराभ्याम्।
नगेन्द्रकन्यावृषकेतनाभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥१॥
namaḥ śivābhyāṃ navayauvanābhyāṃ parasparāśliṣṭavapurdharābhyām।
nagendrakanyāvṛṣaketanābhyāṃ namo namaḥ śaṅkarapārvatībhyām ॥1॥
मैं शिव-पार्वती को नमस्कार करता हूं जो नवयौवन का स्वरूप हैं, जो एक-दूसरे के शरीर को आलिंगन करते हैं, पर्वत हिमवंत की पुत्री एवं जिनके ध्वज में बैल का प्रतीक है, मैं आपको बार-बार नमन करता हूँ।
I bow to Shiva and Parvati, who are the embodiment of youth, who embrace each other's body, the daughter of the mountain Himavant and whose flag has the symbol of the bull, I bow to you again and again.
नमः शिवाभ्यां सरसोत्सवाभ्यां नमस्कृताभीष्टवरप्रदाभ्याम् ।
नारायणेनाऽर्चितपादुकाभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥२॥
namaḥ śivābhyāṃ sarasotsavābhyāṃ namaskṛtābhīṣṭavarapradābhyām ।
nārāyaṇenā'rcitapādukābhyāṃ namo namaḥ śaṅkarapārvatībhyām ॥2॥
मैं शिव-पार्वती को नमस्कार करता हूं जो सरसोत्सव के अवसर पर पूज्य होते हैं और जो केवल एक नमस्कार द्वारा वांछित सभी वरदानों को प्रदान करते हैं, जिनके पादुकाएँ भगवान नारायण द्वारा पूजित की जाती हैं। मैं शिव-पार्वती को पुनः पुनः नमस्कार करता हूँ।
I salute Shiva-Parvati who is worshiped on the occasion of Sarasotsava and who grants all the desired boons by just one namaskar, whose feet are worshiped by Lord Narayana. I salute Shiva and Parvati again and again.
नमः शिवाभ्यां वृषवाहनाभ्यां विरञ्चिविष्ण्विन्द्रसुपूजिताभ्याम्।
विभूतिपाटीरविलेपनाभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ ३ ॥
namaḥ śivābhyāṃ vṛṣavāhanābhyāṃ virañciviṣṇvindrasupūjitābhyām।
vibhūtipāṭīravilepanābhyāṃ namo namaḥ śaṅkarapārvatībhyām ॥ 3 ॥
मैं शिव-पार्वती को नमस्कार करता हूँ जो वृषवाहन के साथ हैं और जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और इंद्र भी पूजते हैं, जिनके शरीर पर पवित्र राख और चंदन का लेप लगाया जाता है, मैं उन शिव-पार्वती को पुनः-पुनः नमस्कार करता हूँ।
I salute Shiva and Parvati, who accompany the Vrishavahana and who are also worshiped by Brahma, Vishnu, and Indra, whose body is coated with sacred ash and sandalwood. I salute Shiva and Parvati again and again.
नमः शिवाभ्यां जगदीश्वराभ्यां जगत्पतिभ्यां जयविग्रहाभ्याम् ।
जम्भारिमुख्यैरभिवन्दिताभ्यां नमो नम: शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ ४ ॥
namaḥ śivābhyāṃ jagadīśvarābhyāṃ jagatpatibhyāṃ jayavigrahābhyām ।
jambhārimukhyairabhivanditābhyāṃ namo nama: śaṅkarapārvatībhyām ॥ 4 ॥
मैं शिव-पार्वती को नमस्कार करता हूँ जो जगदीश्वर, जगत्पति, और विजय के रूप में प्रसिद्ध हैं, जिनकी इन्द्रादि प्रमुख देवों द्वारा भी वंदना की जाती है। मैं उन्हें शिव-पार्वती को पुनः पुनः नमस्कार करता हूँ।
I offer my obeisances to Shiva-Parvati who are famous as Jagadishvara, Jagatpati, and Vijaya, who are also worshiped by Indra and other chief deities. I salute them again and again to Shiva and Parvati.
नमः शिवाभ्यां परमौषधाभ्यां पञ्चाक्षरीपञ्जररञ्जिताभ्याम्।
प्रपञ्चसृष्टिस्थितिसंहृतिभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ ५ ॥
namaḥ śivābhyāṃ paramauṣadhābhyāṃ pañcākṣarīpañjararañjitābhyām।
prapañcasṛṣṭisthitisaṃhṛtibhyāṃ namo namaḥ śaṅkarapārvatībhyām ॥ 5 ॥
मैं शिव-पार्वती को नमस्कार करता हूँ जो योगी-जनों के लिये परम औषधरूप हैं और पंचाक्षर मंत्र के हृदय में विराजमान हैं। जो संसार की सृष्टि, स्थिति और संहार को नियंत्रित करती हैं। मैं उन शिव-पार्वती को पुनः- पुनः नमस्कार करता हूँ।
I salute Shiva and Parvati who are the ultimate medicine for yogis and are present in the chest of Panchakshar Mantra. Who controls the creation, state and destruction of the world. I salute those Shiva-Parvati again and again.
नमः शिवाभ्यामतिसुन्दराभ्या-मत्यन्तमासक्तहृदम्बुजाभ्याम्।
अशेषलोकैकहितङ्कराभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ ६ ॥
namaḥ śivābhyāmatisundarābhyā-matyantamāsaktahṛdambujābhyām।
aśeṣalokaikahitaṅkarābhyāṃ namo namaḥ śaṅkarapārvatībhyām ॥ 6 ॥
मैं शिव-पार्वती को नमस्कार करता हूँ जो अत्यंत सुंदर हैं और अपने भक्तों (योगी-जनों) के हृदय-कमल में निवास करते हैं, जो समस्त लोकों के हित के लिए कार्य करते हैं, मैं उन्हें, शिव-पार्वती को, पुनः पुनः नमस्कार करता हूँ।
I salute Shiva and Parvati, who are extremely beautiful and reside in the lotus hearts of their devotees (yogis), who work for the welfare of all the worlds. I salute them, Shiva and Parvati. I salute you again and again.
नमः शिवाभ्यां कलिनाशनाभ्यां कङ्कालकल्याणवपुर्धराभ्याम्।
कैलासशैलस्थितदेवताभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ ७ ॥
namaḥ śivābhyāṃ kalināśanābhyāṃ kaṅkālakalyāṇavapurdharābhyām।
kailāsaśailasthitadevatābhyāṃ namo namaḥ śaṅkarapārvatībhyām ॥ 7 ॥
मैं शिव-पार्वती को नमस्कार करता हूँ कलि के सभी दोषों के विनाशक हैं जो (जिस प्राणी से शरीर में मात्र हड्डियों का ढाँचा रह गया हो, ऐसे मृत-प्राय प्राणी को) जो तारक मन्त्र द्वारा परमपद प्राप्त कराने वाले हैं, कैलाश पर्वत पर विराजमान ऐसे देवताओं को नमस्कार है, मैं उन, शिव-पार्वती को, पुनः- पुनः नमस्कार करता हूँ।
I salute Shiva-Parvati, who are the destroyers of all the evils of Kali (the dead creature from whom only the skeleton of bones is left in the body) and who makes one attain the supreme position through the Tarak Mantra, on Mount Kailash. Salutations to such seated gods, I salute them, Shiva-Parvati, again and again.
नमः शिवाभ्यामशुभापहाभ्या- मशेषलोकैकविशेषिताभ्याम् ।
अकुण्ठिताभ्यां स्मृतिसम्भृताभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ ८ ॥
namaḥ śivābhyāmaśubhāpahābhyā- maśeṣalokaikaviśeṣitābhyām ।
akuṇṭhitābhyāṃ smṛtisambhṛtābhyāṃ namo namaḥ śaṅkarapārvatībhyām ॥ 8 ॥
मैं शिव-पार्वती को नमस्कार करता हूँ जो समस्त लोकों के लिए अशुभता का विनाश करने वाले हैं, ऐसे एकमात्र अद्वितीय शिव और शिवा को मेरा प्रणाम है, जो भक्तों का सदैव स्मरण रखते हैं और अकुण्ठित (चिंता-मुक्त) हैं। मैं उन्हें शिव-पार्वती को पुनः पुनः नमस्कार करता हूँ।
I salute Shiva-Parvati who are the destroyers of inauspiciousness for all the worlds, I salute the only unique Shiva and Shiva, who always remembers the devotees and is free from worries. I salute them again and again to Shiva and Parvati.
नमः शिवाभ्यां रथवाहनाभ्यां रवीन्दुवैश्वानरलोचनाभ्याम् ।
राकाशशाङ्काभमुखाम्बुजाभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ ९ ॥
namaḥ śivābhyāṃ rathavāhanābhyāṃ ravīnduvaiśvānaralocanābhyām ।
rākāśaśāṅkābhamukhāmbujābhyāṃ namo namaḥ śaṅkarapārvatībhyām ॥ 9 ॥
मैं शिव-पार्वती को नमस्कार करता हूँ जो रथ (वाहन) पर विराजमान हैं, सूर्य-चन्द्र-अग्निरूप तीन नेत्र वाले शिव और शिवा को मेरा नमस्कार है। पूर्णिमा की रात के चन्द्रमा की आभा के समान मुख-कमल वाले शंकर-पार्वती को मेरा बार- बार नमस्कार है।
I salute Shiva and Parvati who are seated on the chariot (vehicle), and I salute Shiva and Shiva who have three eyes in the form of Sun, Moon, and Fire. My salutations again and again to Shankar and Parvati, whose faces are like the glow of the moon on a full moon night.
नमः शिवाभ्यां जटिलन्धराभ्यां जरामृतिभ्यां च विवर्जिताभ्याम् ।
जनार्दनाब्जोद्भवपूजिताभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ।।१०।।
namaḥ śivābhyāṃ jaṭilandharābhyāṃ jarāmṛtibhyāṃ ca vivarjitābhyām ।
janārdanābjodbhavapūjitābhyāṃ namo namaḥ śaṅkarapārvatībhyām ।।10।।
जटाजूटधारी, जरा (वृद्धावस्था) एवं मृत्यु से रहित शिव और शिवा को मेरा नमस्कार है। जनार्दन भगवान् (विष्णु) एवं ब्रह्माजी द्वारा पूजित भगवान् शंकर और देवी पार्वती को मेरा बार-बार नमस्कार है।
My salutations to Lord Shiva, who is adorned with hair and is free from old age and death. My repeated salutations to Lord Shankar and Goddess Parvati, worshiped by Lord Janardan (Vishnu) and Brahmaji.
नमः शिवाभ्यां विषमेक्षणाभ्यां बिल्वच्छदामल्लिकदामभृद्भ्याम् ।
शोभावतीशान्तवतीश्वराभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥११॥
namaḥ śivābhyāṃ viṣamekṣaṇābhyāṃ bilvacchadāmallikadāmabhṛdbhyām ।
śobhāvatīśāntavatīśvarābhyāṃ namo namaḥ śaṅkarapārvatībhyām ॥11॥
त्रिनेत्रधारी, बिल्वपत्र तथा मालती आदि सुगन्धित पुष्पों की माला धारण करने वाले शिव-शिवा को मेरा नमस्कार है। शोभावती और शान्तवती के ईश भगवान् शंकर एवं पार्वती को मेरा बार-बार नमस्कार है।
My salutations to Lord Shiva who has three eyes and wears a garland of fragrant flowers like Bilva leaves and Malti etc. My salutations again and again to Lord Shankar and Parvati, the Gods of beauty and peace.
नमः शिवाभ्यां पशुपालकाभ्यां जगत्त्रयीरक्षणबद्धहृद्भ्याम् ।
समस्तदेवासुरपूजिताभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ १२ ॥
namaḥ śivābhyāṃ paśupālakābhyāṃ jagattrayīrakṣaṇabaddhahṛdbhyām ।
samastadevāsurapūjitābhyāṃ namo namaḥ śaṅkarapārvatībhyām ॥ 12 ॥
समस्त प्राणियों का पालन-पोषण करने तथा तीनों लोकों की रक्षा करनेमें जिनका हृदय निरन्तर लगा हुआ है, ऐसे शिव-शिवा को मेरा नमस्कार है। समस्त देवों तथा असुरों द्वारा पूजित शंकर और पार्वती को मेरा बार-बार नमस्कार है।
My salutations to Shiva-Shiva, whose heart is constantly engaged in nurturing all living beings and protecting the three worlds. My salutations again and again to Shankar and Parvati, who are worshiped by all the gods and demons.
स्तोत्रं त्रिसन्ध्यं शिवपार्वतीयं भक्त्या पठेद् द्वादशकं नरो यः ।
स सर्वसौभाग्यफलानि भुंक्ते शतायुरन्ते शिवलोकमेति ॥ १३ ॥
stotraṃ trisandhyaṃ śivapārvatīyaṃ bhaktyā paṭhed dvādaśakaṃ naro yaḥ ।
sa sarvasaubhāgyaphalāni bhuṃkte śatāyurante śivalokameti ॥ 13 ॥
जो प्राणी अत्यन्त श्रद्धा-भक्तिपूर्वक शिव और पार्वती-सम्बन्धी बारह श्लोकों वाले इस स्तोत्र का प्रातः, मध्याह्न तथा सायंकाल पाठ करता है, वह सौ वर्षपर्यन्त जीवन धारणकर सभी सौभाग्यफलों का उपभोग करता है और अन्त में शिवलोक को प्राप्त होता है।
The person who recites this stotram containing twelve verses related to Shiva and Parvati with utmost devotion in the morning, afternoon, and evening, lives for a hundred years and enjoys all the good fortunes, and finally attains Shivlok.
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